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॥ श्री स्वामिनारायणो विजयते ॥

परब्रह्म पुरुषोत्तम

भगवान श्रीस्वामिनारायण के

॥ वचनामृत ॥

गढ़डा प्रथम ५

ध्यान का आग्रह

संवत् १८७६ में मार्गशीर्ष शुक्ला अष्टमी (२५ नवम्बर, १८१९) को श्रीजीमहाराज श्रीगढ़डा-स्थित दादाखाचर के राजभवन में विराजमान थे। उन्होंने श्वेत वस्त्र धारण किए हुए थे। उनके मुखारविन्द के समक्ष स्थान-स्थान के हरिभक्तों की सभा हो रही थी।

उस समय श्रीजीमहाराज ने कहा कि, “राधिकाजी सहित श्रीकृष्ण भगवान का ध्यान करना चाहिए। यदि ऐसा ध्यान करते समय मूर्ति हृदय में न दिखायी पड़े तो भी ध्यान करना चाहिए, परन्तु कायर बनकर ध्यान छोड़ देना नहीं चाहिए। इस प्रकार के आग्रहवाले भक्तों पर भगवान की बड़ी कृपा होती है तथा नकी भक्ति से भगवान उनके वश में हो जाते हैं।”

॥ इति वचनामृतम् ॥ ५ ॥

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This Vachanamrut took place ago.


५. यहाँ राधिका के सहित श्रीकृष्ण भगवान के ध्यान का आदेश दिया गया है। इस दृष्टांत से श्रीहरि के उत्तम भक्त अक्षरब्रह्म गुणातीतानंद स्वामी तथा ब्रह्मस्वरूप सत्पुरुष के साथ भगवान स्वामिनारायण का ध्यान करना चाहिए ऐसा तात्पर्यार्थ है।

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प्रकरण गढ़डा प्रथम (७८) सारंगपुर (१८) कारियाणी (१२) लोया (१८) पंचाळा (७) गढ़डा मध्य (६७) वरताल (२०) अमदावाद (३) गढ़डा अंत्य (३९) भूगोल-खगोल वचनामृतम् अधिक वचनामृत (११)

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