share

॥ श्री स्वामिनारायणो विजयते ॥

परब्रह्म पुरुषोत्तम

भगवान श्रीस्वामिनारायण के

॥ वचनामृत ॥

गढ़डा प्रथम ५०

कुशाग्रबुद्धि

संवत् १८७६ में माघ कृष्णा प्रतिपदा (३१ जनवरी, १८२०) को प्रातःकाल श्रीजीमहाराज श्रीगढ़डा-स्थित दादाखाचर के राजभवन की ऊपर की मंजिल के सामने विराजमान थे। उन्होंने श्वेतवस्त्र धारण किए थे। उनके मुखारविन्द के समक्ष सभा में मुनि तथा स्थान-स्थान के हरिभक्त बैठे थे।

फिर श्रीजीमहाराज ने मुनियों से यह प्रश्न पूछा कि, “जिसकी कुशाग्रबुद्धि होती है, उसे ब्रह्म (परब्रह्म) की प्राप्ति होती है। ऐसी कुशाग्रबुद्धि क्या लौकिक व्यवहार में अत्यन्त दक्ष पुरुष हो, अथवा शास्त्रों-पुराणों के भलीभाँति अर्थवेत्ता हो, उसकी कही जा सकती है या नहीं?”

इसका उत्तर देने का मुनियों ने प्रयत्न किया, परन्तु यथार्थरूप से वे उत्तर न दे पाए।

तब श्रीजीमहाराज बोले कि, “कितने ही मनुष्य अत्यन्त व्यवहार-कुशल होते हैं, फिर भी वे आत्मकल्याण के लिए कोई भी यत्न नहीं करते तथा कुछ लोग शास्त्रों, पुराणों और इतिहास के अर्थों को अच्छी तरह जानते हुए भी अपने कल्याण के लिए कोई प्रयास नहीं करते, इसीलिए उन्हें कुशाग्रबुद्धिवाला नहीं मानना चाहिए। बल्कि, ऐसे मनुष्यों को स्थूलबुद्धिवाला ही समझा जाना चाहिए। जो कल्याण के लिए प्रयत्न करते हैं, वे अल्पबुद्धि होने पर भी कुशाग्रबुद्धिवाले होते हैं तथा जो लौकिक व्यवहार में दत्तचित्त होकर जुटा हुआ है, वह अति सूक्ष्मबुद्धिवाला होने पर भी स्थूलबुद्धिवाला कहलाता है। इस विषय पर भगवद्गीता का श्लोक है:

“‘या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी।
यस्यां जाग्रति भूतानि, सा निशा पश्यतो मुनेः॥’७८

“इसका अर्थ यह है कि भगवान का भजन करने में समस्त जगत के जीवों की बुद्धि रात्रि के समान अन्धकारमय बनी रहती है, अर्थात् ऐसे जीव भगवान का भजन नहीं करते। जो भगवद्भक्त हैं, वे भगवान के भजन के सम्बंध में जाग्रत हैं, अर्थात् वे भगवान का निरन्तर भजन करने में लगे हुए हैं। एवं, एक ओर जहाँ जीवमात्र की बुद्धि शब्द, स्पर्श, रूप, रस, तथा गन्ध नामक पाँच विषयों में जाग्रत बनी हुई है, अर्थात् ये जीव विषयों को भोगने में ही लगे हुए हैं, वहीं दूसरी ओर भगवान के भक्तों की बुद्धि इन विषयभोगों के प्रति अन्धकारयुक्त बनी रहती है, अर्थात् वे विषयों का उपभोग नहीं करते।

“अतः इस तरह जो आत्मकल्याण के लिए सावधान होकर व्यवहार करें वही कुशाग्र बुद्धिवाले हैं और उनके बिना तो सभी मूर्ख हैं।”

॥ इति वचनामृतम् ॥ ५० ॥

* * *

This Vachanamrut took place ago.


७८. गीता: २/६९

SELECTION
प्रकरण गढ़डा प्रथम (७८) सारंगपुर (१८) कारियाणी (१२) लोया (१८) पंचाळा (७) गढ़डा मध्य (६७) वरताल (२०) अमदावाद (३) गढ़डा अंत्य (३९) भूगोल-खगोल वचनामृतम् अधिक वचनामृत (११)

Type: Keywords Exact phrase