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॥ श्री स्वामिनारायणो विजयते ॥

परब्रह्म पुरुषोत्तम

भगवान श्रीस्वामिनारायण के

॥ वचनामृत ॥

गढ़डा प्रथम ७

अन्वय-व्यतिरेक

संवत् १८७६ में मार्गशीर्ष शुक्ला दशमी (२६ नवम्बर, १८१९) को श्रीजीमहाराज श्रीगढ़डा स्थित दादाखाचर के राजभवन में श्वेत वस्त्र धारण करके विराजमान थे। उनके मुखारविन्द के समक्ष स्थान-स्थान के साधुओं एवं हरिभक्तों की सभा हो रही थी।

उस समय श्रीजीमहाराज बोले, “शास्त्रों में जहाँ-जहाँ अध्यात्म-वार्ता आती है, उसे कोई समझ नहीं पाता और भ्रान्ति हो जाती है। इसलिए हम अध्यात्म-वार्ता के यथार्थ स्वरूप का वर्णन करते हैं, उसे सभी लोग सुनें। जीवात्मा जब स्थूल, सूक्ष्म तथा कारण इस प्रकार की देह के साथ एकात्मभाव से व्यवहार किया करती है, तो वह जीव का ‘अन्वय-भाव’ है, और उसी जीव को इन तीनों देहों से पृथक् तथा सत्तामात्र कहना वह जीव का व्यतिरेक भाव है। तथा विराट, सूत्रात्मा और अव्याकृत इन तीनों शरीरों सहित ईश्वर का जो वर्णन है, वह ईश्वर का अन्वय-भाव है और उसी ईश्वर को उपरोक्त तीनों शरीरों से पृथक् सत्तामात्र कहना, वह ईश्वर का व्यतिरेक-भाव है। माया और माया के कार्यरूप अनन्तकोटि ब्रह्मांडों में, अक्षरब्रह्म को व्यापकरूप से कहना, वह अक्षरब्रह्म का अन्वय-भाव है और उन सबसे व्यतिरेक सच्चिदानन्दरूप१० से अक्षरब्रह्म को कहना, वह उनका व्यतिरेक-भाव है। इसके अतिरिक्त अक्षरब्रह्म, ईश्वर, जीव, माया और माया के कार्यरूप ब्रह्मांडों में श्रीकृष्ण भगवान (प्रत्यक्ष श्रीहरि) को जो अन्तर्यामीरूप तथा नियन्तारूप में कहना, यह भगवान का अन्वय-भाव है और वही भगवान इन सबसे पृथक् तथा गोलोकधाम की ब्रह्मज्योति११ में रहनेवाले हैं, ऐसा कहना वह भगवान का व्यतिरेक-भाव है। इस प्रकार पुरुषोत्तम भगवान, अक्षरब्रह्म, माया, ईश्वर तथा जीव - ये जो पाँच तत्त्व हैं, वे अनादि हैं।”

॥ इति वचनामृतम् ॥ ७ ॥

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This Vachanamrut took place ago.


७. आत्मा, परमात्मा आदि स्वरूप के ज्ञानयुक्त।

८. चिद्रूप, स्वयंप्रकाश तथा अछेद्य, अभेद्य स्वरूप आदि।

९. ज्ञानसत्तामात्र।

१०. अक्षरधाम में मूर्तिमान सेवकरूप में तथा ब्रह्मधाम के रूप में।

११. ‘गोलोक में ब्रह्मज्योति’ का अर्थ अनंत गोलोकों के बीच अक्षरधाम सर्वोच्च है। जैसे कि अन्य पर्वतों के बीच हिमालय सबसे बड़ा है, उस प्रकार ‘गोलोक में ब्रह्मज्योति’ कि विभावना है, परंतु ‘गोलोक के भीतर अक्षरधाम अर्थात् ब्रह्मज्योति का समावेश है’ यह आशय नहीं है। (वचनामृत गढ़डा प्रथम प्रकरण - ६३)

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प्रकरण गढ़डा प्रथम (७८) सारंगपुर (१८) कारियाणी (१२) लोया (१८) पंचाळा (७) गढ़डा मध्य (६७) वरताल (२०) अमदावाद (३) गढ़डा अंत्य (३९) भूगोल-खगोल वचनामृतम् अधिक वचनामृत (११)

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