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कीर्तन मुक्तावली

प्रस्तावना

उद्विग्न मन को शांत करने का उपाय है, नवधा भक्ति!

उसमें भी ‘कलौ कीर्तनात्’ कहकर शास्त्रों ने कलि युग में कीर्तन भक्ति को प्रभु प्रसन्नता का श्रेष्ठ साधन बताया है।

सूरदास, तुलसीदास, मीराबाई, नरसिंह मेहता आदि प्रभु भक्तों के सुंदर भक्तिपदों आज भी हमें प्रेमभक्ति से प्लावित करते है।

परब्रह्म स्वामिनारायण भगवान के मुक्तानंद स्वामीजी, प्रेमानंद स्वामीजी, ब्रह्मानंद स्वामीजी, निष्कुलानंद स्वामीजी, देवानंद स्वामीजी, मंजुकेशानंद स्वामीजी, कृष्णानंद स्वामीजी आदि नंद-परमहंसों ने तो ‘एक सहजानंद चरण के उपासी’ बनकर प्रकट पुरुषोत्तम की उपासना - भक्ति के आह्लाद से संसार को आह्लादित किया है।

धर्म, ज्ञान, वैराग्य एवं महिमायुक्त भक्ति से सभर उनकी काव्य कृति ने हमारी संस्कृति, संस्कार तथा अध्यात्म परंपरा का सुचारू रूप से संपोषण किया है।

‘ब्रह्म होई परब्रह्म उपासत’ आदि कीर्तन पंक्तियों में अक्षर रूप होकर पुरुषोत्तम की उपासना करने का सुंदर तत्वसिद्धांत स्पष्ट रूप से प्रस्फुटित होता है।

प्रकट भगवान की लावण्यता, माधुर्यता , उनके शील, स्वभाव और सौन्दर्य का वर्णन करते मूर्ति के पदों, प्रभु लीला, उत्सव, संत महिमा, भगवद् प्राप्ति की महिमा तथा सदुपदेश के पदों की अद्‌भुत रचना कर इन परमहंस ने भारतीय अध्यात्म साहित्य में विलक्षण योगदान प्रदान कर उसे समृद्ध बनाया है।

संस्कृत, गुजराती, हिन्दी, पंजाबी, मारवाड़ी तथा ऊर्दू आदि भाषा के शब्दप्रयोग परमहंसों की विद्वत प्रतिभा को प्रकाशित करता है।

प्रत्यक्ष स्वामिनारायण भगवान ही इन परमहंसों की प्रेरणा थे और प्रकट पुरुषोत्तम भगवान श्री स्वामिनारायण की प्रसन्नता ही उनका लक्ष्य था।

ब्रह्मस्वरूप प्रमुख स्वामीजी महाराज की प्रेरणा से प्रेरक कीर्तन पदों का संगृह इस ‘कीर्तन मुक्तावली’ ग्रंथ में किया गया है, जो भगवान की आराधना में उपयोगी माध्यम बन गया है।

‘कीर्तन मुक्तावली’ में से हिन्दी भजनों को विषयानुसार विभाजित कर, हिन्दी लिपि में अलग से मिलें ऐसी मांग को देखकर यह भक्तिमय पुरुषार्थ किया है।

प्रकट ब्रह्मस्वरूप महंत स्वामीजी महाराज की प्रसन्नता की ही एक मात्र अभिलाषा सह हार्दिक जय स्वामिनारायण।

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