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संस्कृत (देवनागरी लीपी)
સંસ્કૃત (ગુજરાતી લીપી)
Sanskṛuta (Transliteration)
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॥ શ્રી સ્વામિનારાયણો વિજયતે ॥
॥ સત્સંગદીક્ષા ॥
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वार्ता कार्या
વાર્તા કાર્યા
Vārtā kāryā
પ્રેમે કરીને તથા આદર થકી
Preme karīne tathā ādar thakī
With affection and reverence, one should
प्रेम एवं आदर से ब्रह्म एवं परब्रह्म की महिमा तथा उनके संबंधयुक्त भक्तों की महिमा की बातें निरंतर करें। (१३९)
प्रेमाने आणि आदराने ब्रह्म आणि परब्रह्मांच्या व त्यांच्या भक्तांच्या महिम्या संबंधीच्या गोष्टी निरंतर कराव्यात. (139)
सत्सङ्गिषु
સત્સઙ્ગિષુ
Satsangiṣhu
મુમુક્ષુએ સત્સંગીઓને વિષે
Mumukṣhue satsangīone viṣhe
Mumukshus should keep suhradbhāv,
मुमुक्षु, सत्संगीजनों में सुहृद्भाव, दिव्यभाव एवं ब्रह्मभाव रखे। (१४०)
मुमुक्षूंनी सत्संगींमध्ये सुहृद्भाव (सौहार्द), दिव्यभाव आणि ब्रह्मभाव ठेवावा. (140)
परमात्मपरब्रह्म-
પરમાત્મપરબ્રહ્મ-
Paramātma-Parabrahma-
પરમાત્મા પરબ્રહ્મ સ્વામિનારાયણ
Paramātmā Parabrahma Swāminārāyaṇ
With discretion, one should always keep the paksh of
परमात्मा परब्रह्म भगवान श्रीस्वामिनारायण, अक्षरब्रह्मस्वरूप गुणातीत गुरु, उनके द्वारा प्रदान किए गए दिव्य सिद्धांत एवं उनके आश्रित भक्तों का सदैव विवेकसहित पक्ष रखें। (१४१-१४२)
परमात्मा परब्रह्म स्वामिनारायण भगवान, अक्षरब्रह्मस्वरूप गुणातीत गुरू यांनी दिलेले दिव्य सिद्धांत तथा त्यांच्या आश्रित भक्तांचा विवेकपूर्वक सदैव पक्ष ठेवावा. (141-142)
तदर्पितस्य
તદર્પિતસ્ય
Tad-arpitasya
પરમાત્મા પરબ્રહ્મ સ્વામિનારાયણ ભગવાન, અક્ષરબ્રહ્મસ્વરૂપ ગુણાતીત ગુરુ,
Paramātmā Parabrahma Swāminārāyaṇ Bhagwān, Akṣharbrahma-swarūp guṇātīt guru,
With discretion, one should always keep the paksh of Paramatma Parabrahman Swaminarayan Bhagwan, the Aksharbrahman Gunatit guru,
परमात्मा परब्रह्म भगवान श्रीस्वामिनारायण, अक्षरब्रह्मस्वरूप गुणातीत गुरु, उनके द्वारा प्रदान किए गए दिव्य सिद्धांत एवं उनके आश्रित भक्तों का सदैव विवेकसहित पक्ष रखें। (१४१-१४२)
परमात्मा परब्रह्म स्वामिनारायण भगवान, अक्षरब्रह्मस्वरूप गुणातीत गुरू यांनी दिलेले दिव्य सिद्धांत तथा त्यांच्या आश्रित भक्तांचा विवेकपूर्वक सदैव पक्ष ठेवावा. (141-142)
आज्ञां भगवतो
આજ્ઞાં ભગવતો
Āgnām Bhagavato
ભગવાન અને બ્રહ્મસ્વરૂપ ગુરુની આજ્ઞાનું
Bhagwān ane brahmaswarūp gurunī āgnānu
One should always obey the commands of
भगवान एवं ब्रह्मस्वरूप गुरु की आज्ञा का सदैव पालन करें। उनकी अनुवृत्ति (रुचि) जानकर उसका दृढता से अनुसरण करें। आलस्य आदि का सर्वथा परित्याग करके उनकी आज्ञा का पालन तुरंत करें। सदा आनंद, उत्साह एवं महिमा के साथ उन्हें प्रसन्न करने के भाव से आज्ञा का पालन करें। (१४३-१४४)
भगवंत आणि ब्रह्मस्वरूप गुरूंच्या आज्ञेचे सदैव पालन करावे. त्यांच्या अनुवृत्तिला दृढपणे अनुसरावे. त्यांची आज्ञा आळस वगैरे सोडून पाळावी, तत्काळ पाळावी; सदैव आनंद, उत्साह आणि महिम्यासह त्यांना प्रसन्न करण्याच्या भावनेने पाळावी. (143-144)