कीर्तन मुक्तावली

संध्या आरती-अष्टक

श्री स्वामिनारायण आरती

जय स्वामिनारायण, जय अक्षरपुरुषोत्तम,

अक्षरपुरुषोत्तम जय, दर्शन सर्वोत्तम, जय स्वामि...1

मुक्त अनंत सुपूजित, सुन्दर साकारम्, जय सुन्दर...

सर्वोपरी करुणाकर, मानव तनुधारम्, जय स्वामि...2

पुरुषोत्तम परब्रह्म, श्रीहरि सहजानंद, जय श्रीहरि...

अक्षरब्रह्म अनादि, गुणातीतानंद, जय स्वामि...3

प्रकट सदा सर्वकर्ता, परम मुक्तिदाता, जय परम...

धर्म एकांतिक स्थापक, भक्ति परित्राता, जय स्वामि...4

दासभाव दिव्यता सह, ब्रह्मरूपे प्रीति, हो ब्रह्मरूपे...

सुहृदभाव अलौकिक, स्थापित शुभरीति, जय स्वामि...5

धन्य धन्य मम जीवन, तव शरणे सुफलम्, हो तव शरणे...

यज्ञपुरुष प्रवर्तित, सिद्धांतं सुखदम्, जय स्वामि...6

धुन

रामकृष्ण गोविंद, जय जय गोविंद!

हरे राम गोविंद, जय जय गोविंद!

नारायण हरे, स्वामिनारायण हरे!

स्वामिनारायण हरे, स्वामिनारायण हरे!

कृष्णदेव हरे, जय जय कृष्णदेव हरे!

जय जय कृष्णदेव हरे, जय जय कृष्णदेव हरे!

वासुदेव हरे, जय जय वासुदेव हरे!

जय जय वासुदेव हरे, जय जय वासुदेव हरे!

वासुदेव गोविंद, जय जय वासुदेव गोविंद!

जय जय वासुदेव गोविंद, जय जय वासुदेव गोविंद!

राधे गोविंद, जय जय राधे गोविंद!

वृंदावनचंद्र, जय राधे गोविंद!

माधव मुकुंद, जय माधव मुकुंद!

आनंदकंद, जय माधव मुकुंद!

स्वामिनारायण! स्वामिनारायण!

स्वामिनारायण! स्वामिनारायण!

स्वामिनारायण! स्वामिनारायण! स्वामिनारायण!

अष्टक

अनन्त-कोटीन्दु-रविप्रकाशे धाम्न्यक्षरे मूर्तिमताक्षरेण ।

सार्धं स्थितं मुक्तगणावृतं च श्री स्वामिनारायणमानमामि ॥१॥

अनंत कोटि चंद्र और सूर्य समान प्रकाशमान तेजोमय अक्षरधाम में अनादि मूर्तिमान अक्षर के साथ विराजमान और अनंत मुक्तगणों से आवृत श्रीस्वामिनारायण भगवान को मैं प्रणाम करता हूँ॥१॥

ब्रह्मादि-संप्रार्थनया पृथिव्यां जातं समुक्तं च सहाक्षरं च ।

सर्वावतारेश्ववतारिणं त्वां श्री स्वामिनारायणमानमामि ॥२॥

ब्रह्मा आदि देवों की प्रार्थना से भूमंडल पर अक्षरब्रह्म (स्वामीश्री गुणातीतानंदजी) और मुक्तों के साथ प्रकट हुए सर्व अवतारों के भी अवतारी (सर्वोपरी) ऐसे आप श्रीस्वामिनारायण भगवान को मैं प्रणाम करता हूँ॥२॥

दुश्प्राप्यमन्यैः कठिनैरुपायैः समाधिसौख्यं हठयोगमुख्यैः ।

निजाश्रितेभ्यो ददतं दयालुं श्री स्वामिनारायणमानमामि ॥३॥

हठयोग आदि कठिन साधनों से भी समाधि दुर्लभ है ऐसी समाधि का सुख अपने आश्रितजनों को केवल कृपा से ही सहज में अर्पित करने वाले दयालु प्रभु श्रीस्वामिनारायण भगवान को मैं प्रणाम करता हूँ॥३॥

लोकोत्तरैर्भक्तजनांश्चरित्रै-राह्लादयन्तं च भुवि भ्रमन्तम् ।

यज्ञांश्चच तन्वानमपारसत्वं श्री स्वामिनारायणमानमामि ॥४॥

अपने लोकोत्तर दिव्य चरित्रों से भक्तजनों को आनंद प्रदान करते, भूमंडल पर विचरण करते, अनेक यज्ञ करते और अपार शक्ति के धारक श्रीस्वामिनारायण भगवान को मैं प्रणाम करता हूँ॥४॥

एकान्तिकं स्थापयितुं धरायां धर्मं प्रकुर्वन्तममूल्यवार्ताः ।

वचःसुधाश्च प्रकिरन्तमूर्व्याम् श्री स्वामिनारायणमानमामि ॥५॥

भूमंडल पर एकांतिक धर्म की स्थापना के लिए अमूल्य कथावार्ताओं से उपदेश करते, और धरा पर वाणी रूपी अमृत बहाते श्रीस्वामिनारायण भगवान को मैं प्रणाम करता हूँ॥५॥

विश्वेशभक्तिं सुकरां विधातुं बृहन्ति रम्याणि महितलेऽस्मिन् ।

देवालयान्याशु विनिर्मिमाणं श्री स्वामिनारायणमानमामि ॥६॥

अखिल विश्व के स्वामी-परमात्मा पुरुषोत्तम नारायण की भक्ति सभी लोग सहजता से कर सके इसलिए यह भूमंडल पर बड़े रमणीय दिव्य मंदिरों का निर्माण करने वाले श्रीस्वामिनारायण भगवान को मैं प्रणाम करता हूँ॥६॥

विनाशकं संसृतिबन्धनानां मनुष्यकल्याणकरं महिष्ठम् ।

प्रवर्तयन्तं भुवि सम्प्रदायं श्री स्वामिनारायणमानमामि ॥७॥

संसार के बंधनों का नाश करने वाले और मानवों का कल्याण करते ऐसे तथा महान संप्रदाय का भूमंडल पर प्रवर्तन करने वाले ऐसे श्रीस्वामिनारायण भगवान को मैं प्रणाम करता हूँ॥७॥

सदैव सारंगपुरस्य रम्ये सुमन्दिरे ह्यक्षरधामतुल्ये ।

सहाक्षरं मुक्तयुतं वसन्तं श्री स्वामिनारायणमानमामि ॥८॥

साक्षात् अक्षरधाम समान सारंगपुर के सुरम्य मंदिर में अनादि अक्षरब्रह्म श्रीगुणातीतानंद स्वामी तथा महामुक्त श्रीगोपालानंद स्वामी सहित विराजित श्रीस्वामिनारायण भगवान को मैं प्रणाम करता हूँ॥८॥

प्रार्थना

निर्विकल्प उत्तम अति, निश्चय तव घनश्याम;

माहात्म्यज्ञान युक्त भक्ति तव, एकांतिक सुखधाम

मोही में तव भक्तपनों, तामें कोई प्रकार;

दोष न रहे कोई जात को, सुनियो धर्मकुमार

तुम्हारो तव हरिभक्त को, द्रोह कबहु नहीं होय;

एकांतिक तव दास को, दीजे समागम मोय

नाथ निरंतर दर्श तव, तव दासन को दास;

एहि मागूँ करी विनय हरि, सदा राखियो पास

हे कृपालो! हे भक्तपते! भक्तवत्सल! सुनो बात;

दयासिन्धो! स्तवन करी, मागूँ वस्तु सात

सहजानंद महाराज के, सब सत्संगी सुजाण;

ताकुं होय दृढ़ वर्तनों, शिक्षापत्री प्रमाण

सो पत्री में अति बड़े, नियम एकादश होय;

ताकी विक्ति करत हूँ, सुनियो सब चित प्रोय

हिंसा न करनी जन्तु की, परत्रिया संग को त्याग;

मांस न खावत मद्य कुं, पीवत नहीं बड़भाग

विधवा कुं स्पर्शत नहीं, करत न आत्मघात;

चोरी न करनी काहुं की, कलंक न कोई कुं लगात

निंदत नहीं कोय देव कुं, बिन खपतो नहीं खात;

विमुख जीव के वदन से, कथा सुनी नहीं जात

एही धर्म के नियम में, बरतो सब हरिदास;

भजो श्री सहजानंद पद, छोड़ी और सब आस

रही एकादश नियम में, करो श्रीहरिपद प्रीत;

प्रेमानंद कहे धाम में, जाओ निःशंक जगजीत

 

श्री स्वामिनारायण भगवान की जय,

अक्षरपुरुषोत्तम महाराज की जय,

गुणातीतानंदस्वामी महाराज की जय,

भगतजी महाराज की जय,

शास्त्रीजी महाराज की जय,

योगीजी महाराज की जय,

प्रमुखस्वामीजी महाराज की जय,

महंतस्वामीजी महाराज की जय ...

 

दंडवत् करते समय गाने के श्लोक

स्वामिनारायण भगवान

अन्तर्यामि परात्परं हितकरं, सर्वोपरी श्रीहरि,

साकारं परब्रह्म सर्वशरणम्, कर्ता दयासागरम्।

आराध्यं मम इष्टदेव प्रकटं, सर्वावतारी प्रभु,

वन्दे दुःखहरं सदा सुखकरं, श्रीस्वामिनारायणम्॥

 

गुणातीतानन्दस्वामी महाराज

साक्षाद् अक्षरधाम दिव्य परमं, सेवारतं मूर्तिमान्

सर्वाधार सदा स्वरोम-विवरे, ब्रह्मांड-कोटी-धरम्।

भक्ति ध्यान कथा सदैव करणं, ब्रह्मस्थितिदायकम्,

वन्दे अक्षरब्रह्म पादकमलं, गुणातीतानन्दनम्॥

 

भगतजी महाराज

श्रीमन् निर्गुण मूर्ति सुंदर तनु, अध्यात्म-वार्तारतम्,

देहातीत दशा अखंड-भजनं, शान्तं क्षमासागरम्।

आज्ञा-पालन-तत्परं गुणग्रही, निर्दोषमूर्ति स्वयम्,

वन्दे प्रागजीभक्त-पादकमलं, ब्रह्मस्वरूपं गुरुम्॥

 

शास्त्रीजी महाराज

शुद्धोपासन मन्दिरं सुरचनम्, सिद्धान्त-रक्षापरम्,

संस्था-स्थापन दिव्य-कार्य-करणं, सेवामयं जीवनम् ।

निष्ठा निर्भयता सुकष्टसहनं, धैर्यं क्षमाधारणम्,

शास्त्री यज्ञपुरुषदास-चरणं, वन्दे प्रतापी गुरुम् ॥

 

योगीजी महाराज

वाणी अमृतपूर्ण हर्षकरणी, संजीवनी माधुरी,

दिव्यं दृष्टिप्रदान दिव्य हसनं, दिव्यं शुभं कीर्तनम् ।

ब्रह्मानंद प्रसन्‍न स्नेहरसितं, दिव्यं कृपावर्षणम्

योगीजी गुरु ज्ञानजीवन पदे, भावे सदा वन्दनम् ॥

 

प्रमुखस्वामी महाराज

विश्वे वैदिक धर्म मर्म महिमा, सत्संग विस्तारकम्,

वात्सल्यं करूणा अहो जनजने, आकर्षणम् अद्‍भुतम् ।

दासत्वं गुरुभक्ति नित्य भजनं, संवादिता साधुता,

नारायणस्वरूप स्वामी प्रमुखं, वन्दे गुरुं मुक्तिदम् ॥

 

महंतस्वामी महाराज

दिव्यं सौम्यमुखारविन्द सरलं, नेत्रे अमीवर्षणम्

निर्दोषं महिमामयं सुहृदयं, शान्तं समं निश्चलम् ।

निर्मानं मृदु दिव्यभाव सततं, वाणी शुभा निर्मला

वन्दे केशवजीवनं मम गुरुं, स्वामी महन्तं सदा ॥

 

स्वामिनारायण स्वामिनारायण

स्वामिनारायण स्वामिनारायण...

 

श्री स्वामिनारायण भगवान की जय,

अक्षरपुरुषोत्तम महाराज की जय,

गुणातीतानंदस्वामी महाराज की जय,

भगतजी महाराज की जय,

शास्त्रीजी महाराज की जय,

योगीजी महाराज की जय,

प्रमुखस्वामीजी महाराज की जय,

महंतस्वामीजी महाराज की जय ...

Kirtan Selection

Category