कीर्तन मुक्तावली
प्रभु मैं आप ही आप भूलाया
प्रभु मैं आप ही आप भूलाया,
देशविदेश बहोत दिन भटक्यो अपने घर नहि आया... ꠶टेक
मेरे पाउं में बेडी बनकर, पड गई ममता माया;
तुम मुझसे कुछ दूर न थे पर, तुम तक पहोंच न पाया... ꠶ १
मन मूरख किनी मनमानी, हीरा जनम गंवाया;
तुम तो नाथ जनम से मेरे, मैं ही रहा पराया... ꠶ २
Prabhu mai āp hī āp bhūlāyā
Prabhu mai āp hī āp bhūlāyā,
Desh-videsh bahot din bhaṭkyo apne ghar nahi āyā... °ṭek
Mere pāu me beḍī bankar, paḍ gaī mamtā māyā;
Tum muzase kuchh dūr na the par, tum tak pahonch na pāyā... ° 1
Man mūrakh kinī manmānī, hīrā janam gavāyā;
Tum to Nāth janam se mere, mai hī rahā parāyā... ° 2