कीर्तन मुक्तावली
थाल
थाल - १: जिमो थाल जीवन! जाऊँ वारी
जिमो थाल जीवन! जाऊँ वारी, धोउँ करचरण करो त्यारी...
आइये प्रभु! पीढ़े पर विराजें, कटोरे कंचनथाल राजे;
कूजा भरा है जल से ताजे... जिमो १
गेहूँ की पूरणपूरी की है, और घृत-मिसरी में डुबो दी है;
कटोरी आमरस भरी है... जिमो २
जलेबी-घेबर मीठे खाजे, दूधपाक, मालपुए साजे;
दाल-बाटी की है तुम काजे... जिमो ३
अचार जिमो हैं भाँति भाँति, सागभाजी बनाई भिन्न जाति;
दही-भात सक्कर भरे राती... जिमो ४
(पाँच मिनट मानसी में ध्यान धरें...)
प्रभु! जलपान अचवन कीजे, इलायची तज लविंग लीजे;
पानबीड़ा मुख में रख दीजे... जिमो ५
मुखवास थाल धरूँ आगे, बिराजो सिंहासन सिर पागे;
प्रसादी भूमानंदजी माँगे... जिमो ६
थाल - २: भोजन जमीये नाथ हमारे
राग: ‘संतजन सोई सदा...’
भोजन लीजिए नाथ हमारे; ध्रुव
कंचन कलश लिये शीतल जल, सनक सनंदन ठाड़े.....१
छप्पन भोग छत्तीसहुं व्यंजन, विविध प्रकार संवारे;
करजोरे कमला लिये थारी, जीमिये प्रानसों प्यारे.......२
दधि माखन पकवान मिठाई, खट रस खाटे खारे;
रुचि रुचि ग्रास भरो मोरे जीवन, परत हूँ पैयाँ तुम्हारे.....३
अक्षरपति हरिकृष्णदेव प्रभु, निज जन हित तनु धारे;
प्रेमानंद पनवारो झूँठको, माँगत ठाड़ो द्वारे......४