कीर्तन मुक्तावली
तुम प्रभु अशरण शरण कहाये
1-27: सद्गुरु ब्रह्मानंद स्वामी
तुम प्रभु अशरण शरण कहाये,
जाको कोई नहीं आ जगमें,
ताके हो तुम नाथ सहाये... ꠶टेक
बहुत जतन कर के बहुनामी,
निज जन के तुम विघ्न मिटाये;
जैसे हरि कुररी के बालक,
महाभारत में लियेरी बचाये... तुम꠶ १
शरणागत-वत्सल तुम समरथ,
वेद पुराण कविजन गाये;
दुष्ट विनाशन बिरद तिहारो,
सो तुम क्युं बैठे बिसराये... तुम꠶ २
राख्यो तुम प्रह्लाद अग्नितें,
गज के काज गरुड तजी धाये;
ब्रह्मानंद कहे बेर हमारी,
कहे तुमकुं कुणने अलसाये... तुम꠶ ३
Tum Prabhu asharaṇ sharaṇ kahāye
1-27: Sadguru Brahmanand Swami
Tum Prabhu asharaṇ sharaṇ kahāye,
Jāko koī nahī ā jagme,
Tāke ho tum Nāth sahāye...
Bahut jatan kar ke Bahunāmī,
Nij jan ke tum vighna mīṭāye;
Jese Hari kurarī ke bālak,
Mahābhārat me liyerī bachāye... tu 1
Sharanāgat-vatsal tum samrath,
Veda Purāṇ kavijan gāye;
Dushṭ vināshan birad tihāro,
So tum kyu baiṭhe bisrāye... tu 2
Rākhyo tum Prahlād agnite,
Gaj ke kāj Garuḍ tajī dhāye;
Brahmānand kahe ber hamārī,
Kahe tumku kuṇne alsāye... tu 3