कीर्तन मुक्तावली
अंखियां हरि दर्शनकी प्यासी
1-827: सूरदास
अंखियां हरि दर्शनकी प्यासी... ꠶टेक
देख्यो चाहत कमलनैन को, निशदिन रहत उदासी... ꠶ १
आये उधो फिरि गये आंगन, डारी गये गर फांसी... ꠶ २
केसर तिलक मोतीन की माला, वृंदावन को वासी... ꠶ ३
काहू के मन की कोऊ न जानत, लोगन के मन हांसी... ꠶ ४
सूरदास प्रभु तुम रे दरस बिन, लैहों करवत कासी... ꠶ ५
Akhiyā Hari darshankī pyāsī
1-827: Surdas
Akhiyā Hari darshankī pyāsī...
Dekhyo chāhat kamalnain ko, nishdin rahat udāsī... 1
Āye udho firi gaye āngan, ḍārī gaye gar fānsī... 2
Kesar tilak motīn kī mālā, Vrundāvan ko vāsī... 3
Kāhu ke man kī koū na jānat, logan ke man hānsī... 4
Sūrdās Prabhu tum re daras bin, laihau karvat kāsī... 5